Friday, May 1, 2009

सपना जो सिर्फ मेरा हो


फिर मरेगा। जानता हूँ कभी अपनी पूरी उमर उसने कब जी है।बस! जन्मता है और फिर मौत की ओर बढने लगता है।मैं सोचता ही रह जाता हूँ कि कुछ समय बाद इसे सवाँर सजा कर सब के सामने रख दूँगा।लेकिन क्या कभी हमारा सोचा पूरा होता है?..हाँ शायद कभी कभी हो जाता है..लेकिन जब तक वह पूरा होता है तब तक अपनी इच्छा ही मर जाती है। ऐसे मे उस का पूरा होना ना होना कोई महत्व नही रखता।
अभी कुछ दिनो की ही तो बात है मैनें सोचा मैं वह सब करूँ जो मेरे भीतर चलता है। मैनें कोशिश भी की ।लेकिन मेरे दोस्तों ने कहा ......यह क्या कर रहे हो? ......यह तुम्हारे से मेल नही खाता...........हमे तुम से यह आशा नही थी कि तुम इस तरह भी कर सकते हो।............अब ऐसे में मैं बेबस हो जाता हूँ.....सोचता हूँ यदि अपने मन की करूँ तो दोस्त छूटते हैं.......और ना करूँ तो अपने भीतर उठते सपनों को...उमंगो को मारना पड़ता है। यह क्रम हरेक के जीवन में शायद ऐसे ही चलता रहता है। हम करने और ना करने के बीच और कभी ना कर पाने की जद्दोजहद मे ही अपने आप को फँसा पाते हैं।
बस! ऐसे ही तो हमारे सपने मरते जाते हैं....और हम नित नये सपनों को सजाते है.........जिनमे कुछ लोग ही ऐसे खुश किस्मत होते हैं जिन के सपनों को कोई मंजिल मिल पाती है।.....क्या कभी आपने ऐसा सपना पूरा करने की कभी सोची है जो सिर्फ तुम्हारा ही हो.....जिस मे दूसरा कोई शामिल ना हो ?...... जिसे सिर्फ तुम अकेले ही जीना चाहते हो.............मैं उसी सपने की तलाश मे हूँ.................यदि आप को वह कहीं मिल जाए तो मुझे जरूर बताना।.........