Friday, September 26, 2008
कयामत के दिन
रोना सुन लोगों का
कविता भूल रहा हूँ।
नेता के वादों संग
हवा में झूल रहा हूँ।
बिना सिर- पैर की कविता
लिखनें को जी करता है,
क्यू बेकसूर नित मरते,
नेता नही मरता है ?
अरे नासमझ आतंकी !!
हम- तुम को सतानें वाले,
कही ओर हैं बैठे।
बेकसूरों संग भैईए
क्यूँ तुम हो ऎठें।
फोडना है तो
उन का सिर
जा कर के फोड़ो।
जिन की कृपा से बना गधा,
जो कभी था घोड़ो ।
रब का नाम ले जिसने
तुझ को भरमाया।
इस राह पर चल कर तुझे
मिलेगा उस का साया।
क्यूँ नही तू इस राह पर चल ,
उस को पा लेता।
इस राह पर चलनें से पहले
पूछ तो लेता।
मार-मार कर
इक दिन तू भी मर जाएगा।
कयामत के दिन बैठ
बहुत फिर पछताएगा।
10 टिप्पणियाँ:
बहुत ही सुन्दर कविता कही हे आप ने, काश उन लोगो की आंखे खुले जो यह सब करवाते हे, लेकिन किस के लिये???
धन्यवाद
mere blog par aane ke liye dhanyewaad agar aapki tarah or logo ko bhi meri baat samaj aa jaaye to mera hindustan videsh mein na baske har hindustani ke dil mein basega saccha bharat
saral shabdon mein sachi baat. Kafi acha laga aapka blog.
बाली साहिब ,बहुत सुंदर रचना =सच में एक बार पढ़ कर फ़िर दुबारा पढी
वाह बाली साहब ! मान गए
बिना सिर- पैर की कविता
लिखनें को जी करता है,
क्यू बेकसूर नित मरते,
नेता नही मरता है ?
सुंदर और सार्थक मेरे ब्लॉग पर पधारने का धन्यबाद . नियमित आगमन मेरे सबल और उत्साह को बढाएगा
फोडना है तो
उन का सिर
जा कर के फोड़ो।
जिन की कृपा से बना गधा,
जो कभी था घोड़ो ।
bahot hi sacchi yatharth se parichay karaya aapne ...satya hai.... badhai.
regards
इस राह पर चलनें से पहले
पूछ तो लेता।
मार-मार कर
इक दिन तू भी मर जाएगा।
कयामत के दिन बैठ
बहुत फिर पछताएगा।
sahi kathan
ATI
SUNDAR BEHATREEN SIR JEE
bahut hi badhiyaa likha hai
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