वादों की आई बहार ।
गर्म हुआ बाजार
भिखारी बना
नेता खड़ा है
आज तेरे द्वार।
वोट का सवाल है!
द्वार-द्वार चिल्ला रहा!
एक नेता दूजे पर
कैसे है झल्ला रहा।
इस लड़ाई में दोनों के,
कपड़े हुए हैं तार-तार।
वादों की आई बहार ।
सभी दिखे सियार हैं,
एक दूसरे से ज्यादा
दिख रहे मक्कार हैं।
किस को वोट दिजिए?
जनता का किसी ने कब
किया है उद्धार?
वादों की आई बहार ।
साँ प, नागराज में,
चोर ,साहूकार में,
बने जिस की भी सरकार।
तुझे तो झेलनी पड़ेगी
महँगाई की ये मार।
वोटरो का वोट तो
जायगा बेकार।
वादों की आई बहार ।
इस लिए आँख बंद कर,
किसी भी पार्टी के ऊपर,
अगुँली को दबाईए।
एक दिन की छुट्टी को
खुशी-खुशी मनाईए।
खाली जेंबों में अपनें
हाथों को घुमाईए।
बार-बार बेवकूफ बन,
जरा मुस्कराईए।
पता नही
अपने देश की किस्मत
अब कब बदलेगी यार!
वादों की आई बहार ।
वादों की आई बहार ।
3 टिप्पणियाँ:
Bahut badiya.
अजी जब यह भिखारी आये वोट मांगने तो इन से पहले पिछले सालो का हिसाब पुछे.
बहुत ही सुंदर
धन्यवाद
achha laga apkee kavitaon ko padh kar.
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