Friday, November 28, 2008

वादों की आई बहार ।

वादों की आई बहार ।
गर्म हुआ बाजार
भिखारी बना
नेता खड़ा है
आज तेरे द्वार।

वोट का सवाल है!
द्वार-द्वार चिल्ला रहा!
एक नेता दूजे पर
कैसे है झल्ला रहा।
इस लड़ाई में दोनों के,
कपड़े हुए हैं तार-तार।
वादों की आई बहार ।

सभी दिखे सियार हैं,
एक दूसरे से ज्यादा
दिख रहे मक्कार हैं।
किस को वोट दिजिए?
जनता का किसी ने कब
किया है उद्धार?
वादों की आई बहार ।


साँ प, नागराज में,
चोर ,साहूकार में,
बने जिस की भी सरकार।
तुझे तो झेलनी पड़ेगी
महँगाई की ये मार।
वोटरो का वोट तो
जायगा बेकार।
वादों की आई बहार ।

इस लिए आँख बंद कर,
किसी भी पार्टी के ऊपर,
अगुँली को दबाईए।
एक दिन की छुट्टी को
खुशी-खुशी मनाईए।
खाली जेंबों में अपनें
हाथों को घुमाईए।
बार-बार बेवकूफ बन,
जरा मुस्कराईए।
पता नही
अपने देश की किस्मत
अब कब बदलेगी यार!
वादों की आई बहार ।
वादों की आई बहार ।

3 टिप्पणियाँ:

सचिन मिश्रा said...

Bahut badiya.

राज भाटिय़ा said...

अजी जब यह भिखारी आये वोट मांगने तो इन से पहले पिछले सालो का हिसाब पुछे.
बहुत ही सुंदर
धन्यवाद

amitabhpriyadarshi said...

achha laga apkee kavitaon ko padh kar.

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