Wednesday, December 17, 2008

गुलाम देश

जिस देश में
उसी की भाषा को
नकारा जाए।
हिन्दी बोलने वालो को
जाहिल पुकारा जाए।
फिर भी हम कहते फिरे
"मेरा देश महान है।"
लेकिन यह सच नही है।
जो विदेशी भाषा को बोल
सम्मान पाता हो।
वह मेरा देश
आज भी गुलाम है।

Tuesday, December 9, 2008

जब ओशो ने मेरे छोटे भाई को दीक्षा दी


जब में घर पहुँचा तो देखा ओशो घर पर एक अपनी किसी युवा सन्यासिनी के साथ मेरे घर में बैठे हुए हैं।यह मेरे लिए बहुत सुखद अनुभूति थी। मै समझ नही पा रहा था कि आज वे मेरे घर कैसे आ गए । वह उस समय घर वालो के साथ बतिया रहे थे। मैं इस मौके को कैमरे में केद कर लेना चाहता था। मैनें अपनें बड़े भाई से पूछा की -
"क्या वे अपना कैमरा ले कर आए हैं?"
क्योंकि मैं जानता था उन्हें फोटो खीचंनें का बहुत शोक है। वह जब भी कभी बाहर कहीं भी जाते हैं ,तब उन का कैमरा अक्सर उन्हीं के पास होता है।लेकिन आज जब मैनें पूछा तो उन्होनें मना कर दिया। मुझे इस से बहुत खीजं-सी महसूस हुई।लेकिन अब क्या कर सकता था।यह मौका मेरे हाथ से निकल ही गया था। लेकिन फिर सोचा चलो! आज जी भर कर बातें ही करते हैं।ओशो अपने अनुभव बता रहे थे।कि कैसे एक बार उन्ही के किसी सन्यासी ने उन्हीं से सन्यास लेकर उन्हें ही समझाना शुरू कर दिया था।इसी तरह बाते करते -करते अचानक उन्होने अपनी आँखे बन्द कर ली। फिर इशारे से मेरे छोटे भाई को अपने पास बैठने को कहा और वे स्वयं सुखासन पर बैठ मेरे छोटे भाई के माथे को थाम कर बैठ गए। मैं देख रहा था कि उस समय ओशो के मुखमडंल पर कैसी आभा दीख पड़ रही थी। उस समय पूरे कमरे में एक शीतल -सी लहर दोड़ती महसूस हो रही थी और चारों ओर एक विचित्र-सी गंध फैलती जा रही थी। कुछ समय बाद ओशो ने अपनी आँखें खोल दी।उन की आँखों मे एक विचित्र -सी चमक दिख रही थी।फिर उन्होनें उसके माथे से हाथ हटा लिया।लेकिन काफी देर तक वे मौन ही बैठे रहे। लेकिन जब वे मेरे भाई का माथा थामे बैठे थे उस समय मेरे साथ एक विचित्र घटना घटी थी। मुझे अपनी साधनाकाल के समय जब समाधी अवस्था प्राप्त हुई थी,आज मैं भी उन्हें देखते-देखते फिर उस अवस्था मे चला गया था।
कुछ देर मौन रहनें के बाद ओशो ने चुप्पी तोड़ी-
"अब तुम मेरे सन्यासी हो गए हो।"
उन्होनें यह बात मेरे छोटे भाई से कही थी।फिर बोले-
" आज से तुम्हारा नया नाम ओशोदीप है।"
यह सब कुछ देख कर उन के साथ आई सन्यासिनी बहुत भावुक हो गई थी। उस की आँखों से आँसु बहते जा रहे थे। वह भी उठ कर ओशो के पैर पकड़ कर उन से लिपट गई थी।कुछ देर बाद ओशो ने एक अजीब बात कही-
"आज तो मुझे लड्डु खाने का मन कर रहा है।"
यह सुनते ही मैं उठा और कहा मैं अभी लेकर आता हूँ।लेकिन ओशो ने कहा मै तो ऐसे ही मजाक कर रहा था।लेकिन मैं उन के लिए लड्डु लेने के लिए निकल गया।मेरे साथ मेरा भतीजा भी था। मैनें दुकान से लड्डु लेकर भतीजे को दिए और उसे भेज कर स्वयं पैसे देने के लिए रुक गया।जब मैं पैसे देकर वापिस हुआ तो मुझे लगा कि मैं अपने घर का रास्ता भूल गया हूँ।बस अब क्या था मै इधर -उधर भटकते हुए अपने घर की तलाश करने लगा, इसी बीच अचानक मेरी नीदं टूट गयी और मैं उठ बैठा। नौ बज चुके थे और बाहर कबाड़ी वाले की आवाज आ रही थी_"कबाड़ीवाला......!!!!!"

Monday, December 1, 2008

शराब चीज ही ऐसी है



इस गीत में शराब के बारे में बताया गया है।कि वह छूटती नही।लेकिन अगर छूटेगी नहि तो क्या हो सकता है इस मुक्तक में पढे-

शराब
पी के गरीब भी जन्नत के मजे लूटे है।
पीने वाला इसे हर शख्स गम से छूटे है।
यह अलग बात है ज्यादा पीनें वालो के लिए,
किसी नालें में गिरनें से उसके दाँत टूटे है।

Friday, November 28, 2008

वादों की आई बहार ।

वादों की आई बहार ।
गर्म हुआ बाजार
भिखारी बना
नेता खड़ा है
आज तेरे द्वार।

वोट का सवाल है!
द्वार-द्वार चिल्ला रहा!
एक नेता दूजे पर
कैसे है झल्ला रहा।
इस लड़ाई में दोनों के,
कपड़े हुए हैं तार-तार।
वादों की आई बहार ।

सभी दिखे सियार हैं,
एक दूसरे से ज्यादा
दिख रहे मक्कार हैं।
किस को वोट दिजिए?
जनता का किसी ने कब
किया है उद्धार?
वादों की आई बहार ।


साँ प, नागराज में,
चोर ,साहूकार में,
बने जिस की भी सरकार।
तुझे तो झेलनी पड़ेगी
महँगाई की ये मार।
वोटरो का वोट तो
जायगा बेकार।
वादों की आई बहार ।

इस लिए आँख बंद कर,
किसी भी पार्टी के ऊपर,
अगुँली को दबाईए।
एक दिन की छुट्टी को
खुशी-खुशी मनाईए।
खाली जेंबों में अपनें
हाथों को घुमाईए।
बार-बार बेवकूफ बन,
जरा मुस्कराईए।
पता नही
अपने देश की किस्मत
अब कब बदलेगी यार!
वादों की आई बहार ।
वादों की आई बहार ।

Saturday, November 1, 2008

आश्वाशन

अब खाली हांडी
चूल्हे पर चड़ेगी।
माँ उस हांडी मे
करछी घुमाएगी।
ताकी बच्चों को लगे
आज कुछ खाने को मिलेगा।
इस बंजर धरती पर कोई फूल खिलेगा।

जल्दी ही वह समय आएगा
जब दुनिया भर के गरीबो को
नेताओ से
ऐसा ही आश्वासन मिलेगा।
बिना कपडे के उन के लिए सूट सिलेगा।


यह भविष्य का सच है
आने वाले समय में
गरीब और अमीर के बीच की खाई
जल्दी मिट जाएगी।
क्यूँकि
गरीब की गरीबी ही उसे खाएगी।

Thursday, October 30, 2008

लिव इन

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आज कल हमारी पत्नी
हर बात में दखल देने लगी है।
लगता है नारी मुक्ति की
अभिलाषा उस में भी जगी है।

हमारा
लिव इन का समर्थन
उसे नही भा रहा है।
कहती है
आदमी बहुत चालाक है,
सारी मलाई
वह खुद ही खा रहा है।

माना लिव इन से
दूसरी औरत को
हक मिल जाएगा।
गुलछरें तो आदमी ही उड़ाएगा।

लिव इन का मजा तो तब है
जब औरत को
दो-दो पति रखने का हक हो।
अपने हिस्से मे भी यह गुड लक हो।

घर वाले और बाहर वाले से,
अपनी फरमाईशें पूरी करवाएं।
एक से घर का काम ले,
दूसरे के संग पिच्चर जाएं।

ये भी क्या !!
लिव इन के जरिए
तुम्हें दो-दो रखने का
अधिकार मिल जाएगा।
एक घर तो
तुम्हारी कमाई से चलता नही
दूसरा क्या खाक चल पाएगा!

Tuesday, October 28, 2008

चंद मुक्तक

सिर्फ यादो के सहारे जो जिया जाता।
बिन सुई-धागे गर कुछ सिया जाता
जिन्दगी कितनी हसीं हो जाती,
रोशन बिना बाती ये दीया होता।

******

याद उनकी जब भी आती है|
बेवफा थे, यही बताती है |
भूलना फिर भी उनको मुश्किल है,
यही बात हमको सताती है|

*******

याद उनकी क्यों जाती ही नही |
आँख को
कोई शै भाँती ही नही।
या रब बता ये माज़रा क्या है,
अपने लिए बहार आती ही नही।

********

Sunday, October 19, 2008

लिव इन


आज कल हमारी पत्नी
हर बात में दखल देने लगी है।
लगता है नारी मुक्ति की
अभिलाषा उस में भी जगी है।

हमारा
लिव इन का समर्थन
उसे नही भा रहा है।
कहती है
आदमी बहुत चालाक है,
सारी मलाई
वह खुद ही खा रहा है।

माना लिव इन से
दूसरी औरत को
हक मिल जाएगा।
गुलछरें तो आदमी ही उड़ाएगा।

लिव इन का मजा तो तब है
जब औरत को
दो-दो पति रखने का हक हो।
अपने हिस्से मे भी यह गुड लक हो।

घर वाले और बाहर वाले से,
अपनी फरमाईशें पूरी करवाएं।
एक से घर का काम ले,
दूसरे के संग पिच्चर जाएं।

ये भी क्या !!
लिव इन के जरिए
तुम्हें दो-दो रखने का
अधिकार मिल जाएगा।
एक घर तो
तुम्हारी कमाई से चलता नही
दूसरा क्या खाक चल पाएगा!

Friday, October 17, 2008

करवा चौथ और हम

नोट:- यह एक हास्य कविता है कोई इसे अन्यथा ना ले।
सुबह उठते ही
पत्नी चिल्लाई-
आज करवा चौथ है,
आज मेरा व्रत है।
हम मन मे सोच रहे थे।
क्यूँ हरेक पति
अपनी अपनी बीबी से त्रस्त है।

बीबी ने शायद
हमारे मन की बात पढ ली-
बोली-
तुम्हारी लम्बी उमर के लिए
यह व्रत करती हूँ।
तुम्हारे लिए ही तो
सारा दिन भूखी मरती हूँ।

हम मन में सोच रहे थे
हमारे लिए कहाँ...?
यह व्रत अपने सुख के लिए करती हो।
जब तक हम जिन्दा हैं
तभी तक यह ठाठ करती हो।

हमारे जानें के बाद
यह बहुएं और बैटे
तुम्हे रोज जबरद्स्ती व्रत करवाएंगे
उस समय हम तुम्हें बहुत याद आएगें।

Saturday, October 11, 2008

कश्मीर हम और हमारे नेता

पहले कश्मीर अब असम में भी पाक झंडा उठाया जा रहा है।हमारे देश के कर्ण धार वोटों की राजनिति की खातिर आँखें बन्द किए बैठे हैं।हम तो बस सिर्फ विरोध चीख ही सकते हैं,लेकिन क्या हमारे चिल्लानें का असर हमारे देश के कर्णधारों पर कभी पड़ता है?

चंद सिरफिरों की हरकतें,चंद सिरफिरों का जनून।
बर्बाद कर रहा है, मेरे देश का कानून।
वोट की खातिर, मेरे नेता असूल बदलें,
लगता है धीरे-धीरे सफेद हो रहा है खून।

************

कुर्सियों की खातिर जलवा रहे तिरंगा।
शर्म नही आती,रोज हो रहा है दंगा।
जा कर इन्हें जगाओ,बेगैरतों को,
देश का ये नेता क्यूँ, सोच से है नंगा।

*********************

Thursday, October 9, 2008

दशहरे की बधाई

आज सुबह नीदं देर से खुली
लेकिन उठते ही हम ने
पत्नी को दी-
"दशहरे की बधाई।"
यह सुन पत्नी चिल्लाई-
ओ कुम्भंकरण के भाई!
आज छुट्टी है तो
क्या पड़े-पड़े खाट तोड़ोगे।
उठकर काम मे हाथ बटाओं,
शाम होने से पहले ही तुम
दोस्तों संग दशहरा देखने दोड़ोगे।

हमने कहा-
हमें रावण का भाई मत कहो,
हम तो रामजी के पद चिन्हों पर चलते हैं।
पत्नी बोली-
रहने दो।
आज सभी पुरूष
राम के नाम पर
हम अबलाओं को छलते हैं।
हमने पूछा-
हमने कब छला जरा बतला दो।
वह बोली -
सदियों से हमे अर्धागनी कहते हो,
अब बराबरी का हक भी दिलवा दो।
हमने तेश मे आकर कहा-
जाओ !आज से हमने तुम्हें ,
बराबरी का हक दिया।
अब क्या कहती हो बता दो।
वह बोली-
ठीक है,
अब जरा चुन्नु-मुन्नु को नहला दो।
अब अपनी बात पर कैसे टिके रहे?
भाईयों जरा बता दो।
हमारी इस अधुरी कविता को
कोई पूरा करवा दो।

Monday, October 6, 2008

रह जाता ब्रह्मचारी

मेरे घर हर दो चार दिन बाद
एक तूफान आता है।
लड़ती हैं महिलाएं
लेकिन नुकसान हर बार
मेरा कर जाता है।

मैनें देखा है अक्सर
बिना किसी कारण के भी
वह लड़्ने का कारण ढूँढ लेती हैं।
आज तक समझ ना सका
ऐसा खेल वे
कैसे खेल लेती हैं।

सब से अजीब बात तो
तब होती हैं।
जब वे लड़्ती तो हैं आपस में,
पर मेरे सामनें बैठकर रोती हैं
दो दिन बाद फिर
एक ही बिस्तर पर सोती हैं।

उन का ये बार-बार का
रोना-धोना देख कर
मेरी समझ गई मारी।
अब सोच रहा हूँ
शादि ना करता
रह जाता ब्रह्मचारी।

Sunday, October 5, 2008

क्रिकेट और एक सोच


खेलो क्रिकेट
पेलो क्रिकेट,
बैठ निठल्ले
झेलों क्रिकेट।
हर बारी पिट जाए
तो क्या ?
बार-बार तुम
ठेलो क्रिकेट।
हार -हार कर
फिर हारेगें,
लेकिन भैया
छोड़ ना क्रिकेट।
इसके लिए सारी
जनता पागल,
देश को कभी कुछ
हुआ ना हासिल,
फिर भी प्यारे
खेल तू क्रिकेट।
तुझे गुलामी की
निशानी
अंग्रेजों से मिली है क्रिकेट।
राट्रीय भाषा तू
छोड़ के बैठा
पसंद करे
अग्रेजी गिट पिट।
खेल तू क्रिकेट।
खेल तू क्रिकेट।
बेशर्मी से
खेल तू क्रिकेट।
देश का धन औ’
समय गँवा कर।
नेताओ की
जेबें भर, भर।
जनता को
करने दे टर- टर।
मगंन रहो
बस खेलो क्रिकेट।
खेलो क्रिकेट।
खेलो क्रिकेट।

Tuesday, September 30, 2008

मुझे कुछ ब्लोगरों से शिकायत है

प्रिय ब्लोगर मित्रों,मुझे उन ब्लोगर मित्रों से शिकायत है। जो अपने ब्लोग पर" शब्दपुष्टिकरण" को लगा कररखते हैं।जिस कारण टिप्पणी करनें वाले को काफी परेशानी होती है।ऐसे में टिप्पणी करने वाले का दोगुना समयलगता है।यह बात मुझे स्वयं टिप्पणियां करते समय अनुभव हुई। कई बार पोस्ट पढने के बाद कुछ टिप्पणी करने को मन करत है लेकिन जब शब्दपुष्टिकरण देखते हैं तो बिना टिप्पणी किय ही लौट जाते हैं।जिस से आप को टिप्पणी नही कर पाता।अत: उन ब्लोगर मित्रों से निवेदन है कि वे अपनें ब्लोग पर शब्दपुष्टिकरण ना लगाएं।
इसे हटाने के लिए आप अपने ब्लोग की सेटिग्स पर जाएं।फिर जहाँ टिप्पणियां लिखा है उसे किलकाएं।उस के बाद जहाँ लिखा है टिप्पणियों के लिए शब्दपुष्टिकरण दिखाएं उस के सामनें ही हाँ और नहीं लिखा है।वहाँ पर आप नहीं पर किलकाएं और फिर सेंटिग्स सहेजें पर किलकाएं।बस यह पुष्टिकरण हट जाएगा।यदि आप यह करते हैं तो मैं आप का आभारी रहूँगा :)

नोट:- यह लेख उन के लिए है जो नहीं जानते।

Friday, September 26, 2008

कयामत के दिन


रोना सुन लोगों का
कविता भूल रहा हूँ।
नेता के वादों संग
हवा में झूल रहा हूँ।

बिना सिर- पैर की कविता
लिखनें को जी करता है,
क्यू बेकसूर नित मरते,
नेता नही मरता है ?

अरे नासमझ आतंकी !!
हम- तुम को सतानें वाले,
कही ओर हैं बैठे।
बेकसूरों संग भैईए
क्यूँ तुम हो ऎठें।

फोडना है तो
उन का सिर
जा कर के फोड़ो।
जिन की कृपा से बना गधा,
जो कभी था घोड़ो ।

रब का नाम ले जिसने
तुझ को भरमाया।
इस राह पर चल कर तुझे
मिलेगा उस का साया।
क्यूँ नही तू इस राह पर चल ,
उस को पा लेता।
इस राह पर चलनें से पहले
पूछ तो लेता।
मार-मार कर
इक दिन तू भी मर जाएगा।
कयामत के दिन बैठ
बहुत फिर पछताएगा

Wednesday, September 24, 2008

मुझे लगता है अब यह भी.......


एक बार एक गाँव के पास शास्त्रीय संगीत सम्मेलन हो रहा था। उस सम्मेलन में बड़े-बड़े संगीतज्ञ अपना गायन सुना रहे थे।एक बहुत बड़े संगीतज्ञ्य ने जब अपना गायन शुरू किया तो कुछ ही देर के बाद वहाँ गाँव की बैठी एक बुढिया ने पहले तो सिसकियां लेनी शुरू कर दी.... फिर जैसे -जैसे गायन तेज होता गया वह सुबकनें लगी...जब गायन और चरम पहुँचा तो वह जोर-जोर से रोनें लगी। यह सब देख कर वहाँ बैठे अन्य संगीज्ञयों ने उस बुढीया से रोनें का कारण पूछा तो उसनें कहा कि कुछ दिन पहले उस का एक बहुत प्यारा बकरा मर गया था। इस पर उन्होनें पूछा बकरा तो कुछ दिन पहले मरा था, लेकिन तुम अब क्यों रो रही हो? उस बुढिया ने बताया कि मेरा बकरा भी मरनें से पहले ऐसे ही शोर मचा- मचा रहा था, जिस तरह यह गानें वाला मचा रहा है। इसी लिए मुझे रोना आ रहा है। क्यों कि मुझे लगता है अबयह भी.......

जरा सोचें

Tuesday, September 23, 2008

जरा सोचिए

Monday, July 28, 2008

मुझे पीपल देवता से बचाएं !


पीपल को बहुत ही पवित्र वृक्ष माना जाता है। कहते हैं कि इसे ब्रह्मा जी ने अपनी कठोर साधना के बल पर धरती पर उतारा था। इस वृक्ष का उपयोग आयुर्वेद में कई रोगों को दूर करनें में काम आता है। कहा जाता है कि इस वृक्ष की परिक्रमा करनें से ही मनोंकामना पूरी हो जाती है। लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि इस पर देवताओं व भूतों-प्रेतों का भी वास होता है।

लेकिन यहाँ पर मैं आपको कुछ और ही बतानें जा रहा हूँ। संयोग कहिए या दुर्योग, इस पीपल नें हमारा साथ कभी नही छोड़ा। हम जहाँ भी जाते रहे हैं। यह पीपल देवता वहीं हमारी छत की शोभा बड़ानें प्रकट हो जाते हैं। कई बार इस से पीछा छुड़ानें के लिए इसे जड़ समेत उखाड़ फैंका, लेकिन पीपल देवता कुछ दिन अंतर्ध्यान रहनें के बाद फिर-फिर प्रकट हो जाते हैं। इसे हटा -हटा कर जब परेशान हो गए तो वह मकान ही बदल लिया।

आज से कुछ वर्ष पहले लिए मकान को जब हम देखनें आए तो सब से पहले हमनें छत पर जा कर देखा कि कहीं यहाँ पीपल देवता तो विराजमान नहीं हैं।जब हमें पूरी तरह विश्वास हो गया कि यहाँ वह कहीं भी नजर नहीं आ रहे तब हमनें उस घर को अपना निवास बनाया। लेकिन कुछ वर्षों बाद उस मकान की छत पर भी पीपल देवता प्रकट हो गए। अब तक हम उन्हें बीसीयॊं बार काट-काट कर थक चुके हैं। लेकिन वह वहाँ से हटनें का नाम नहीं ले रहे हैं। क्या आप के पास कोई उपाए है इस से बचनें का? कृपया पीपल देवता के सताए एक प्राणी की मदद करें!

Friday, March 14, 2008

जरा सोचिए

इस में छिपे संदेश के बारे में आप क्या कहते हैं-

जरा सोचें

आज जहाँ देखो साधू महाराज और गुरुजन प्रवचन करते नजर आते है। इन्हे देख कर लगता है कि भारत में धर्म तथा सदाचार की लहरें चारों ओर दोड़ रही हैं।चारों और धर्म और सदाचार का प्रचार करते बाबाओं का ,विभिन्न चैंनलों पर गूँजता स्वर।यह एहसास दिलानें लगता है कि भारत के लोग अध्यात्म के कितनें ऊँचे सौपान पर पहुँचते जा रहे हैं।लेकिन हकीकत कुछ और ही है। आज इन्सान पहले से भी ज्यादा भ्रष्ट और असंवेदनशील होता जा रहा है।हमारे तथा कथित ज्यादातर गुरु और धर्म का प्रचार करनें वाले,सिर्फ अपना हित साधनें में लगे हुए हैं आज उन्हें अपनें शिष्यों की संख्या और संपत्ति को बढानें की होड़ लगी हुई है।क ैसे भी कर के वह सबसे आगे निकल जाए....इसी के चारों और सारे आडंम्बर किए जा रहे हैं। आज यू ट्यूब मॆं एक विज्ञापन द्वारा यह संदेश बहुत कुछ कह रहा हैं...आप भी देखे....