Friday, December 31, 2010

नव वर्ष की बधाई !!


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paly पर किलकायें करें।

Saturday, December 25, 2010

Merry Chrismas !!

Musical Merry Christmas Song Scraps Comments Graphics

Musical Cards by Scrap U

Sunday, December 12, 2010

एक रंग ये भी.......

Tuesday, August 24, 2010

ताजा चुटकला.....



एक गाँव का बूढ़ा जो कभी बीमार नही पड़ता था एक बार बहुत बुरी तरह बीमार पड़ गया। तब वह अपने गाँव के ही एक डाकटर के पास गया।


"डाक्टर साहब पता नही मेरे को कौन सी बीमारी हो गई है....ठीक होने का नाम ही नही ले रही..."

डाक्टर ने उस की पूरी जाँच करने के बाद कहा -


"तुम्हे तो अब किसी बड़े डाकटर के पास जाना पड़ेगा.....छोटे डाक्टर के बस की बात नही कि तुम्हें ठीक कर सके। "
बूढा यह सुन कर बोला-
"ठीक है डाकटर साह। मैं किसी बड़े डाक्टर को खोजता हूँ। "


तब से वह बूढ़ा बड़े डाक्टर को खोज रहा है......लेकिन उसे आज तक उस से बड़ा डाक्टर नही मिला। क्योकि जिस डाक्टर ने उसे यह सुझाव दिया था उस डाक्टर का कद ६फुट ८इंच था।

Sunday, August 15, 2010

क्या खबर थी ये........

 
आज १५ अगस्त है....पता नही मन आज क्युँ कुछ ज्यादा ही उदास हो रहा है। रह रह कर मन कर रहा है कि थोड़ा रो लूँ। शायद मेरे भीतर की पीड़ा कुछ कम हो सकेगी। लेकिन मुझे लग रहा है कि सिर्फ मैं ही ऐसा महसूस नही कर रहा....आज देश में वह हर रहने वाला जिसे अपने देश से जरा -सा भी प्यार है....उस के दिल में एक कसक,एक दर्द-सा जरूर रह रह कर उठ रहा होगा।आज भगत सिहँ राजगुरू सुखदेव नेताजी आदि सभी देश भगत..मुझे बहुत याद आ रहे हैं......मुझे ऐसा लगता है जैसे वे सभी कहीं हमारे आस-पास ही हैं और  हमें देख रहे हैं....वह हमें देख रहे हैं एक उम्मीद भरी नजर से....। वह हमें बहुत कुछ कहना चाह रहें हैं.....लेकिन लगता है आज उनकी बातों को कोई सुनना ही नही चाह रहा.....या यूँ कहूँ कि देश में धमाकों, नेताओ के भाषणों,उन के झूठे वादों, न्याय के लिए गुहार लगाते देशवासीयों और महँगाई से रोती जनता की चीख-पुकार के कारण इतना शोर हो रहा है कि हमें कुछ सुनाई ही नही दे रहा। मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि देश के सभी कर्णधार देशवासीयों की इस हालत को देख कर मुस्करा रहे हैं.....क्योंकि वे जानते हैं वे सभी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं...किसी को भी अपने मतदानों से जितवा दो....वह कुर्सी पर बैठते ही एक-सा ही  हो जाता है।फिर सत्ता के सुख के आगे उसे कुछ दिखाई ही नही देता।बस यही सब सोचते सोचते कुछ पंक्तियां बन गई हैं.....इन्हें लिखते समय पता नही ऐसा क्युँ लग रहा था कि भीतर कुछ ऐसा है जो आँखों से बाहर आना चाहता है....लेकिन शायद हमीं उसे बाहर नही आने देना चाहते। नीचे की पंक्तियां लिखनें के बाद भी मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि इस से भी  बहुत ज्यादा  कुछ ऐसा है जो मैं या यूँ कहूँ हम कह नही पा रहे....क्यों कि पीड़ा और दुख दर्द को कभी शब्दों से महसूस नही किया जा सकता। 
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दिल मे छुपा हुआ इक अरमान जी उठा।
थी क्या गरज पड़ी उन्हें गये अपनी जां लुटा।      
ना समझ सका आज तक उनके ज़नून को,   
फाँसी का फंदा पहना क्यों, हार -सा उठा।

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क्या खबर थी ये वतन हमें भूल जाएगा।
मेरा तिरंगा होगा लेकिन धूल खाएगा।
क्या खबर थी ये........

मेरे वतन के लोग सभी रास्ता भूले,
देश का नेता वतन को लूट खाएगा।
क्या खबर थी ये........

नेता सुभाष जैसा यहाँ कोई नही है,
जयचंद बैठा कुर्सी पर मुस्कराएगा।
क्या खबर थी ये........

आग लगा खुद ही लोगॊं से ये कहे-
देश पड़ोसी तुम्हारा घर जलाएगा।
क्या खबर थी ये........

फैला के आतंक खुद  शोर करें ये,
खून की हर बूँद वतन पर लुटाएगा।
क्या खबर थी ये........

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हैं यहाँ,
वोट की खातिर ये इनको लड़ाएगा।
क्या खबर थी ये........

सत्ता संभाल बैठे हो जब दोषी यहाँ सारे,
कौन देशवासीयों को  न्याय दिलाएगा।
क्या खबर थी ये........

भगत राजगुरु सुखदेव सोचते होगें-
अपनों की गुलामी से,  कौन बचाएगा।
क्या खबर थी ये........ 

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं..............

Saturday, June 26, 2010

एक भीगी - सी याद..- पिताजी की पुण्य तिथि पर...




नींद उड़ जाती है जब जिक्र तेरा होता है।
अकेला जब होता है  दिल, बहुत रोता है।

उदास रातों मे अक्सर नजर आता है तू,
ये हादसा क्यूँ बार बार, मेरे संग होता है।

कौन देगा जवाब अब ,मेरे सवालों का,
तू अब चैन से बहुत दूर कहीं सोता है।

मेरे हरिक दुख को सुख मे बदलने वाले,
इतना नाराज कोई, अपनो से  होता है।

या खुद आ या बुला मुझको पास अपने,
परमजीत से अब नही इन्तजार  होता है।

Thursday, June 17, 2010

सत्य को कैसे जानें......




                                                                                                      (चित्र गुगुल सभार)



अलबेला जी पोस्ट " सत्य बहुमत की परवाह नहीं करता..... " पढ़ते हुए कुछ प्रश्न मन मे उठे हैं.....कृपया इसे अन्यथा ना लें।यदि किसी की भावना आहत हो तो क्षमा चाहूँगा।बस! इन्हे पढ़ते हुए कुछ प्रश्न मन मे उठे उन्हें जानना चाहता हूँ। कृपया निवारण करें।

जो हमें ठीक लगे
वैसा कहना और वैसा ही करना,
इसका नाम सत्य है
___स्वामी विवेकानन्द

--- यदि यही सत्य है तो चोर जो अपने परिवार के भरण पोषण के लिए चोरी करता है क्या वह भी सत्य है?

अगर तुम मेरे हाथों पर
चाँद और सूरज भी ला कर रख दो,
तब भी मैं
सत्य के मार्ग से विचलित नहीं होऊंगा

___हजरत मुहम्मद
-- कोई कैसे साबित कर सकता है कि वह सत्य मार्ग पर है?



सत्य एक ही है दूसरा नहीं,
सत्य के लिए बुद्धिमान लोग विवाद नहीं करते
___महात्मा बुद्ध
--- लेकिन वह एक सत्य कौन-सा है ?

सत्य बहुमत की परवाह नहीं करता,
एक युग का बहुमत
दूसरे युग का आश्चर्य और शर्म भी हो सकता है
___अज्ञात महापुरुष
-- क्या सत्य का भी कोई मापदंड होता है ?


 

Thursday, June 3, 2010

क्या आपको भी अपने फिगर की चिन्ता नही है....?

आज नेट पर घुमते हुए एक विचार मन मे आया कि नर-मादा दोनों मे से किसे अपनी फिगर की चिन्ता ज्यादा सताती है.......इसी बारे मे खोज कर रहा था कि अनायास ही यह कार्टून हाथ लग गया....सोचा कि आप तक भी इसे पहुँचाया जाए......जरा संभल कर देखे:)



Tuesday, June 1, 2010

जरा मुस्कराएं...


 पत्नी ने पति को एक किताब फैंक कर मारी तो पति बोला।
पति-तुम यह क्या कर रही हो?

पत्नी-मुझे तुम्हारी कमीज की जेब से एक कागज मिला है जिस पर"कोमल" लिखा है।यह "कोमल" कौन है?
पति- अरे! ऐसे ही शक कर रही हो। यह तो पिछले सप्ताह मैने रेस खेली थी। यह उस घोड़ी का नाम है।
पत्नी-सौरी....! मैने बेवजह आपको किताब मार दी।

अगले दिन पत्नी ने  पति को  अल्मारी मे रखी सारी किताबे फैंक-फैंक  कर मारनी शुरू कर दी।


पति ने पूछा- अब क्या हुआ????
पत्नी ने गुस्से से कहा- तुम्हारी घोड़ी का फोन आया था आज........

Saturday, May 1, 2010

नमस्ते तो ठीक है.....लेकिन पहले....



हमारे पड़ोस मे एक माता जी रहती हैं.....वैसे उम्हें माता जी कहना ठीक नही लगता। क्योकि  वे मुझे भाई साहब कहती हैं। अब यह बात अलग है कि उनके बड़े बेटे की उमर मुझ से दो-चार साल ज्यादा ही है। सो मुझे शुरू मे तो अजीब लगा लेकिन अब तो इतना अभ्यस्त हो गया हूँ...कि अब कोई फर्क नही पड़ता...।

बुढ़ा तो हम वैसे ही गए हैं....इस लिए अब तो सब चलता है.......कोई बराबर की उमर का अंकल जी कह दे तो भी।....वैसे इस मे उन बेचारों का भी कोई दोष नही है......अब जब हम पचास-बावन. कि उमर मे भी सत्तर-अस्सी के दिखेगे तो यह सब तो होना ही हैं। सो अब कोई चिंता नही होती......कोई कैसे भी बुलाये। खैर, बात तो हम माता जी कर रहे थे और सूरू हो गए अपनी सुनाने के लिए।....अब तो आप भी हमारी इस बात से समझ गए होगें कि हम सच मे ही बुढ़ा ही गए हैं....।वर्ना एक बात शुरू कर के उसी मे दूसरी बात ना सुनाने लगते।वैसे भी जब कोई इंसान इस तरह करता है तो समझ लो की बुढ़ा गया है या फिर बुढ़ानें वाला है ।

हाँ..तो वह जो माता जी हैं उन का मकान गली में कोने का है। सो जो भी आता है अपनी कार लेकर या स्कूटर लेकर.......वही उन के घर के सामने खड़ा कर के चुपके से खिसक लेता है....।जब माता जी बाहर निकलती हैं...तो परेशान हो कर चिल्लाना शुरू कर देती हैं.....।लेकिन लोग भी इतने ढीठ हैं..कि उन पर कोई असर नही होता।  एक तो माता जी अपने बेटे बहू से वैसे ही दुखी हैं.....दूसरे यह लोग-बाग उन्हे और दुखी कर देते हैं। माता जी अक्सर अपना रोना मेरे सामने रोती रहती हैं.....उनका बेटा हुआ ना हुआ बरबर ही है.......जरा जरा सी बात पर माँ को गालीयां निकालने लगता है....धकियाता है।बहू और उन के बच्चे ऐसे हैं....जिन्हें वह बचपन में सारा दिन खिलाती रहती थी....अब माता जी के आस-पास भी नही फटकते और बहू ऐसी है कि कभी सीधे मुँह उस से कभी बात ही नही करती।......अब तो माता जी को बहू-बेटे ने एक अलग कमरे में पटक दिया है.....जिस मे ना तो बिजली-पंखा है......और पानी माता जी पड़ोस के घर से भरती हैं। बेटा पानी तक नही लेने देता। शुरू शुरू मे तो बेटे को सभी ने समझाने की कोशिश की थी......लेकिन जब वह समझने को ही तैयार नही तो कोई क्या करे?

अब इस आलेख को लिखते हुए तो हमें भी पूरा विश्वास हो चुका है कि हम बुढ़ा ही गये हैं।वर्ना जो घटना या बात आप से कहना चाहते हैं.सीधे उसी की बात ना करते? हुआ ऐसा कि एक बार हमारे पड़ोसी को सूझी कि माता जी के घर के आगे अपनी कार खड़ी करनी शूरू कर दे.....सो वह महाशय अब रोज सुबह साम माता जी को नमस्ते व वरण स्पर्श करने लगे।...जब उन्होनें  अपनी ओर से समझ लिआ कि माता जी अब उन से कूब हिलमिल गई हैं....तो अगले दिन अपनी कार उनके दरवाजे पर खड़ी करने की गरज पहले तो उनका चरण स्पर्श किया फिर नमस्ते कर चलने को हुए तो माता जी ने कहा- "नमस्ते तो भैया ठीक है.....लेकिन पहले यह अपनी कार यहाँ से हटा लो..." यह सारा तमाशा आस-पास और लोग भी देख रहे थे...अत: सभी के चहरे पर एक हल्की सी मुसकराहट फैल गई थी।सो वह महाशय अपनी इज्जत का इस तरह कबाड़ा होता देख कर वहाँ से कार ले तुरन्त नौ दो ग्यारह हो गए। उस दिन के बाद उन महासय को कभी माता जी को नमस्ते करते नही देखा गया।

उन महाशय के जाने के बाद माता जी...हमारे पास आई और बोली-
"भैया!..ये लोग बड़ो को बेवकूफ समझते हैं.....सो अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से बहलाना चाहते हैं।.....अरे ! जब तुम्हारे पास कार पार्क करने की जगह ही नही है तो कार लेते क्यों हो?"

माता जी की बात सुन कर मै भी यह सोचने पर मजबूर हो गया कि माता जी बात तो सही कह रही हैं.....आज कल लोगों ने इतनी  कारें खरीद ली हैं....कि घर से बाहर निकलना कई बार मुश्किल हो जाता है..आए दिन कार पार्क करने को लेकर लोग झगड़ते रहते हैं.....।पुलिस तक बात पहुँच जाती है कई बार तो... और  सरकार को यह सब नजर नही आता। वह सब्जी वालों और रेहड़ी वालों को तो जब तब लताड़ लगाती रहती है लेकिन इस समस्या की ओर से सदा आँखें मूदें रहती है.....वोट का सवाल जो है.....

Friday, March 19, 2010

कमजोर दिल वाले यह पोस्ट ना देखें..

Thursday, February 25, 2010

क्या आप इन पर विश्वास कर सकते हैं.....

आज ही एक मित्र ने ई मेल से कुछ तस्वीरे भेजी हैं...बहुत ही रोचक व अविश्वनीय लगी...आप भी देखें।

Friday, February 19, 2010

जरा हिम्मत तो देखिए

Most Spiders on a Body for 30 Seconds - The funniest movie is here. Find it

Saturday, February 13, 2010

एक गीत शाह्र रूख की जीत पर...

झूम झूम कर
नाचो आज
गाओ आज
गाओ खुशी के गीत। ओ....
शिव सैना की हार हुई है
और खान की जीत..
गाओ खुशी .....


फिल्म हो गई बहुत जरूरी
महँगाई को चीर..
देश की जनता जाए भाड़ में
भले बहाये नीर...
देश की चिंता छोड़ नेता जी
फिल्म देखने पहुँचे बन कर मीत....
ओ गाओ खुशी के......


आज युवराज को याद आ गए
मुबई में, उत्तर भारत के वीर..
जब पिटते थे भाई बिहारी
बैठे रहे धर धीर...
ओ गाओ खुशी के..


जनता को नित गधा बनाएं
अपने देश के नेता...
झूठे वादे कर बार-बार
वोट तुम्हारी लेता....
जनता को भले मिले ना रोटी....
वो खाएगें खीर......
ओ गाओ खुशी के....