Thursday, October 30, 2008

लिव इन

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आज कल हमारी पत्नी
हर बात में दखल देने लगी है।
लगता है नारी मुक्ति की
अभिलाषा उस में भी जगी है।

हमारा
लिव इन का समर्थन
उसे नही भा रहा है।
कहती है
आदमी बहुत चालाक है,
सारी मलाई
वह खुद ही खा रहा है।

माना लिव इन से
दूसरी औरत को
हक मिल जाएगा।
गुलछरें तो आदमी ही उड़ाएगा।

लिव इन का मजा तो तब है
जब औरत को
दो-दो पति रखने का हक हो।
अपने हिस्से मे भी यह गुड लक हो।

घर वाले और बाहर वाले से,
अपनी फरमाईशें पूरी करवाएं।
एक से घर का काम ले,
दूसरे के संग पिच्चर जाएं।

ये भी क्या !!
लिव इन के जरिए
तुम्हें दो-दो रखने का
अधिकार मिल जाएगा।
एक घर तो
तुम्हारी कमाई से चलता नही
दूसरा क्या खाक चल पाएगा!

Tuesday, October 28, 2008

चंद मुक्तक

सिर्फ यादो के सहारे जो जिया जाता।
बिन सुई-धागे गर कुछ सिया जाता
जिन्दगी कितनी हसीं हो जाती,
रोशन बिना बाती ये दीया होता।

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याद उनकी जब भी आती है|
बेवफा थे, यही बताती है |
भूलना फिर भी उनको मुश्किल है,
यही बात हमको सताती है|

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याद उनकी क्यों जाती ही नही |
आँख को
कोई शै भाँती ही नही।
या रब बता ये माज़रा क्या है,
अपने लिए बहार आती ही नही।

********

Sunday, October 19, 2008

लिव इन


आज कल हमारी पत्नी
हर बात में दखल देने लगी है।
लगता है नारी मुक्ति की
अभिलाषा उस में भी जगी है।

हमारा
लिव इन का समर्थन
उसे नही भा रहा है।
कहती है
आदमी बहुत चालाक है,
सारी मलाई
वह खुद ही खा रहा है।

माना लिव इन से
दूसरी औरत को
हक मिल जाएगा।
गुलछरें तो आदमी ही उड़ाएगा।

लिव इन का मजा तो तब है
जब औरत को
दो-दो पति रखने का हक हो।
अपने हिस्से मे भी यह गुड लक हो।

घर वाले और बाहर वाले से,
अपनी फरमाईशें पूरी करवाएं।
एक से घर का काम ले,
दूसरे के संग पिच्चर जाएं।

ये भी क्या !!
लिव इन के जरिए
तुम्हें दो-दो रखने का
अधिकार मिल जाएगा।
एक घर तो
तुम्हारी कमाई से चलता नही
दूसरा क्या खाक चल पाएगा!

Friday, October 17, 2008

करवा चौथ और हम

नोट:- यह एक हास्य कविता है कोई इसे अन्यथा ना ले।
सुबह उठते ही
पत्नी चिल्लाई-
आज करवा चौथ है,
आज मेरा व्रत है।
हम मन मे सोच रहे थे।
क्यूँ हरेक पति
अपनी अपनी बीबी से त्रस्त है।

बीबी ने शायद
हमारे मन की बात पढ ली-
बोली-
तुम्हारी लम्बी उमर के लिए
यह व्रत करती हूँ।
तुम्हारे लिए ही तो
सारा दिन भूखी मरती हूँ।

हम मन में सोच रहे थे
हमारे लिए कहाँ...?
यह व्रत अपने सुख के लिए करती हो।
जब तक हम जिन्दा हैं
तभी तक यह ठाठ करती हो।

हमारे जानें के बाद
यह बहुएं और बैटे
तुम्हे रोज जबरद्स्ती व्रत करवाएंगे
उस समय हम तुम्हें बहुत याद आएगें।

Saturday, October 11, 2008

कश्मीर हम और हमारे नेता

पहले कश्मीर अब असम में भी पाक झंडा उठाया जा रहा है।हमारे देश के कर्ण धार वोटों की राजनिति की खातिर आँखें बन्द किए बैठे हैं।हम तो बस सिर्फ विरोध चीख ही सकते हैं,लेकिन क्या हमारे चिल्लानें का असर हमारे देश के कर्णधारों पर कभी पड़ता है?

चंद सिरफिरों की हरकतें,चंद सिरफिरों का जनून।
बर्बाद कर रहा है, मेरे देश का कानून।
वोट की खातिर, मेरे नेता असूल बदलें,
लगता है धीरे-धीरे सफेद हो रहा है खून।

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कुर्सियों की खातिर जलवा रहे तिरंगा।
शर्म नही आती,रोज हो रहा है दंगा।
जा कर इन्हें जगाओ,बेगैरतों को,
देश का ये नेता क्यूँ, सोच से है नंगा।

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Thursday, October 9, 2008

दशहरे की बधाई

आज सुबह नीदं देर से खुली
लेकिन उठते ही हम ने
पत्नी को दी-
"दशहरे की बधाई।"
यह सुन पत्नी चिल्लाई-
ओ कुम्भंकरण के भाई!
आज छुट्टी है तो
क्या पड़े-पड़े खाट तोड़ोगे।
उठकर काम मे हाथ बटाओं,
शाम होने से पहले ही तुम
दोस्तों संग दशहरा देखने दोड़ोगे।

हमने कहा-
हमें रावण का भाई मत कहो,
हम तो रामजी के पद चिन्हों पर चलते हैं।
पत्नी बोली-
रहने दो।
आज सभी पुरूष
राम के नाम पर
हम अबलाओं को छलते हैं।
हमने पूछा-
हमने कब छला जरा बतला दो।
वह बोली -
सदियों से हमे अर्धागनी कहते हो,
अब बराबरी का हक भी दिलवा दो।
हमने तेश मे आकर कहा-
जाओ !आज से हमने तुम्हें ,
बराबरी का हक दिया।
अब क्या कहती हो बता दो।
वह बोली-
ठीक है,
अब जरा चुन्नु-मुन्नु को नहला दो।
अब अपनी बात पर कैसे टिके रहे?
भाईयों जरा बता दो।
हमारी इस अधुरी कविता को
कोई पूरा करवा दो।

Monday, October 6, 2008

रह जाता ब्रह्मचारी

मेरे घर हर दो चार दिन बाद
एक तूफान आता है।
लड़ती हैं महिलाएं
लेकिन नुकसान हर बार
मेरा कर जाता है।

मैनें देखा है अक्सर
बिना किसी कारण के भी
वह लड़्ने का कारण ढूँढ लेती हैं।
आज तक समझ ना सका
ऐसा खेल वे
कैसे खेल लेती हैं।

सब से अजीब बात तो
तब होती हैं।
जब वे लड़्ती तो हैं आपस में,
पर मेरे सामनें बैठकर रोती हैं
दो दिन बाद फिर
एक ही बिस्तर पर सोती हैं।

उन का ये बार-बार का
रोना-धोना देख कर
मेरी समझ गई मारी।
अब सोच रहा हूँ
शादि ना करता
रह जाता ब्रह्मचारी।

Sunday, October 5, 2008

क्रिकेट और एक सोच


खेलो क्रिकेट
पेलो क्रिकेट,
बैठ निठल्ले
झेलों क्रिकेट।
हर बारी पिट जाए
तो क्या ?
बार-बार तुम
ठेलो क्रिकेट।
हार -हार कर
फिर हारेगें,
लेकिन भैया
छोड़ ना क्रिकेट।
इसके लिए सारी
जनता पागल,
देश को कभी कुछ
हुआ ना हासिल,
फिर भी प्यारे
खेल तू क्रिकेट।
तुझे गुलामी की
निशानी
अंग्रेजों से मिली है क्रिकेट।
राट्रीय भाषा तू
छोड़ के बैठा
पसंद करे
अग्रेजी गिट पिट।
खेल तू क्रिकेट।
खेल तू क्रिकेट।
बेशर्मी से
खेल तू क्रिकेट।
देश का धन औ’
समय गँवा कर।
नेताओ की
जेबें भर, भर।
जनता को
करने दे टर- टर।
मगंन रहो
बस खेलो क्रिकेट।
खेलो क्रिकेट।
खेलो क्रिकेट।