Tuesday, December 9, 2008

जब ओशो ने मेरे छोटे भाई को दीक्षा दी


जब में घर पहुँचा तो देखा ओशो घर पर एक अपनी किसी युवा सन्यासिनी के साथ मेरे घर में बैठे हुए हैं।यह मेरे लिए बहुत सुखद अनुभूति थी। मै समझ नही पा रहा था कि आज वे मेरे घर कैसे आ गए । वह उस समय घर वालो के साथ बतिया रहे थे। मैं इस मौके को कैमरे में केद कर लेना चाहता था। मैनें अपनें बड़े भाई से पूछा की -
"क्या वे अपना कैमरा ले कर आए हैं?"
क्योंकि मैं जानता था उन्हें फोटो खीचंनें का बहुत शोक है। वह जब भी कभी बाहर कहीं भी जाते हैं ,तब उन का कैमरा अक्सर उन्हीं के पास होता है।लेकिन आज जब मैनें पूछा तो उन्होनें मना कर दिया। मुझे इस से बहुत खीजं-सी महसूस हुई।लेकिन अब क्या कर सकता था।यह मौका मेरे हाथ से निकल ही गया था। लेकिन फिर सोचा चलो! आज जी भर कर बातें ही करते हैं।ओशो अपने अनुभव बता रहे थे।कि कैसे एक बार उन्ही के किसी सन्यासी ने उन्हीं से सन्यास लेकर उन्हें ही समझाना शुरू कर दिया था।इसी तरह बाते करते -करते अचानक उन्होने अपनी आँखे बन्द कर ली। फिर इशारे से मेरे छोटे भाई को अपने पास बैठने को कहा और वे स्वयं सुखासन पर बैठ मेरे छोटे भाई के माथे को थाम कर बैठ गए। मैं देख रहा था कि उस समय ओशो के मुखमडंल पर कैसी आभा दीख पड़ रही थी। उस समय पूरे कमरे में एक शीतल -सी लहर दोड़ती महसूस हो रही थी और चारों ओर एक विचित्र-सी गंध फैलती जा रही थी। कुछ समय बाद ओशो ने अपनी आँखें खोल दी।उन की आँखों मे एक विचित्र -सी चमक दिख रही थी।फिर उन्होनें उसके माथे से हाथ हटा लिया।लेकिन काफी देर तक वे मौन ही बैठे रहे। लेकिन जब वे मेरे भाई का माथा थामे बैठे थे उस समय मेरे साथ एक विचित्र घटना घटी थी। मुझे अपनी साधनाकाल के समय जब समाधी अवस्था प्राप्त हुई थी,आज मैं भी उन्हें देखते-देखते फिर उस अवस्था मे चला गया था।
कुछ देर मौन रहनें के बाद ओशो ने चुप्पी तोड़ी-
"अब तुम मेरे सन्यासी हो गए हो।"
उन्होनें यह बात मेरे छोटे भाई से कही थी।फिर बोले-
" आज से तुम्हारा नया नाम ओशोदीप है।"
यह सब कुछ देख कर उन के साथ आई सन्यासिनी बहुत भावुक हो गई थी। उस की आँखों से आँसु बहते जा रहे थे। वह भी उठ कर ओशो के पैर पकड़ कर उन से लिपट गई थी।कुछ देर बाद ओशो ने एक अजीब बात कही-
"आज तो मुझे लड्डु खाने का मन कर रहा है।"
यह सुनते ही मैं उठा और कहा मैं अभी लेकर आता हूँ।लेकिन ओशो ने कहा मै तो ऐसे ही मजाक कर रहा था।लेकिन मैं उन के लिए लड्डु लेने के लिए निकल गया।मेरे साथ मेरा भतीजा भी था। मैनें दुकान से लड्डु लेकर भतीजे को दिए और उसे भेज कर स्वयं पैसे देने के लिए रुक गया।जब मैं पैसे देकर वापिस हुआ तो मुझे लगा कि मैं अपने घर का रास्ता भूल गया हूँ।बस अब क्या था मै इधर -उधर भटकते हुए अपने घर की तलाश करने लगा, इसी बीच अचानक मेरी नीदं टूट गयी और मैं उठ बैठा। नौ बज चुके थे और बाहर कबाड़ी वाले की आवाज आ रही थी_"कबाड़ीवाला......!!!!!"

15 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari said...

यह सब आपका ओशो और उनके दर्शन के प्रति समर्पण भाव दर्शाता है जो ऐसा स्वप्न दिखा. जबलपुर चले आईये. आपको आश्रम ले चलते हैं. वैसे तो पूना भी जा सकते हैं मगर जबलपुर से ही ओशो इस मार्ग पर चले थे अतः इसका महत्व कतई कमतर नहीं.

जय ओशो.

परमजीत सिहँ बाली said...

समीरलाल जी,ओशो के प्रति मेरा छोटा भाई ऐसा भाव रखता है। जहाँ तक मेरी बात है।मेरा रास्ता कुछ अलग है।

Jimmy said...

hmmmmmmm aapne is post post mein aacha varnan kiya hai ओशो ke bare mein good post sir


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मीत said...

आपका ख्वाब आपकी भक्ति का गुणगान कर रहा है...
---मीत

vijay kumar sappatti said...

paramjit ji , main bhi osho ka follower raha hoon as a philosphic aaproch only. aapke bhai ka ye swapan , man mein stith bhav ko darshata hai .

maine apne personal blog mein osho ki do post dali hui hai , kabhi dekhiyenga .

aur yun hi hamen acche acche lekho dwara anandit kariyenga .

vijay
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Vineeta Yashsavi said...

bahut achha hai. aise hi likhte rahiye.

मुकेश कुमार तिवारी said...

परमजीत जी,

एक अच्छे स्वपनदृष्टा हैं और कल्पना की उड़ान संन्यास को भी नही बख्सती है, बधाईयाँ.

जय ओशो

आपकी मेरे ब्लॉग पर की गई यात्रा और टिप्पणी का आभार आगे भी स्नेह बनाये रखे.

मोहन वशिष्‍ठ said...

ओए होए ये कबाडीवाला भी ना कभी भी आ धमकता है काश थोडी देर और रूक जाता तो उसका क्‍या बिगड जाता बाकी बहुत ही अच्‍छा ओशो वृतांत प्रस्‍तुत किया है आपने धन्‍यवाद

बाल भवन जबलपुर said...

गज़ब ढा दिया आज मनीष 4 आल में भी ओशो मिले
आपके ब्लॉग पे भी .
अच्छी पोस्ट के लिए थेंक्स

Dr.Bhawna Kunwar said...

Bahut acha likha aapne bahut-bahut badhai...

दिगम्बर नासवा said...

परमजीत जी
आपका ओशो के प्रति आकर्षण हो या न हो
पर आपकी रचना बहूत ही सुंदर है
कल्पना की उद्दान अच्छी और फ़िर उस पर ब्रेक अच्छी लगी

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

Bhai ji, maza aa gaya, aapne gazab ka turn diya ,quite unexpected and amazing.Well written.yours dr.bhoopendra

विक्रांत बेशर्मा said...

आपकी पोस्ट अच्छी लगी ...शुभकामनाएं !!!

अर्कजेश said...

OSHO...........

कान वो कान हैं जिसने तेरी आवाज सुनी,
आंख वो आंख हैं जिसने तेरा जलवा देखा ।

ओशो से रुबरु हुए लोग भी हमारे कौतुहल का विषय हैं ।
धन्यवाद !

Emily Katie said...

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