आज १५ अगस्त है....पता नही मन आज क्युँ कुछ ज्यादा ही उदास हो रहा है। रह रह कर मन कर रहा है कि थोड़ा रो लूँ। शायद मेरे भीतर की पीड़ा कुछ कम हो सकेगी। लेकिन मुझे लग रहा है कि सिर्फ मैं ही ऐसा महसूस नही कर रहा....आज देश में वह हर रहने वाला जिसे अपने देश से जरा -सा भी प्यार है....उस के दिल में एक कसक,एक दर्द-सा जरूर रह रह कर उठ रहा होगा।आज भगत सिहँ राजगुरू सुखदेव नेताजी आदि सभी देश भगत..मुझे बहुत याद आ रहे हैं......मुझे ऐसा लगता है जैसे वे सभी कहीं हमारे आस-पास ही हैं और हमें देख रहे हैं....वह हमें देख रहे हैं एक उम्मीद भरी नजर से....। वह हमें बहुत कुछ कहना चाह रहें हैं.....लेकिन लगता है आज उनकी बातों को कोई सुनना ही नही चाह रहा.....या यूँ कहूँ कि देश में धमाकों, नेताओ के भाषणों,उन के झूठे वादों, न्याय के लिए गुहार लगाते देशवासीयों और महँगाई से रोती जनता की चीख-पुकार के कारण इतना शोर हो रहा है कि हमें कुछ सुनाई ही नही दे रहा। मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि देश के सभी कर्णधार देशवासीयों की इस हालत को देख कर मुस्करा रहे हैं.....क्योंकि वे जानते हैं वे सभी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं...किसी को भी अपने मतदानों से जितवा दो....वह कुर्सी पर बैठते ही एक-सा ही हो जाता है।फिर सत्ता के सुख के आगे उसे कुछ दिखाई ही नही देता।बस यही सब सोचते सोचते कुछ पंक्तियां बन गई हैं.....इन्हें लिखते समय पता नही ऐसा क्युँ लग रहा था कि भीतर कुछ ऐसा है जो आँखों से बाहर आना चाहता है....लेकिन शायद हमीं उसे बाहर नही आने देना चाहते। नीचे की पंक्तियां लिखनें के बाद भी मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि इस से भी बहुत ज्यादा कुछ ऐसा है जो मैं या यूँ कहूँ हम कह नही पा रहे....क्यों कि पीड़ा और दुख दर्द को कभी शब्दों से महसूस नही किया जा सकता।
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दिल मे छुपा हुआ इक अरमान जी उठा।
थी क्या गरज पड़ी उन्हें गये अपनी जां लुटा।
ना समझ सका आज तक उनके ज़नून को,
फाँसी का फंदा पहना क्यों, हार -सा उठा।
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क्या खबर थी ये वतन हमें भूल जाएगा।
मेरा तिरंगा होगा लेकिन धूल खाएगा।
क्या खबर थी ये........
मेरे वतन के लोग सभी रास्ता भूले,
देश का नेता वतन को लूट खाएगा।
क्या खबर थी ये........
नेता सुभाष जैसा यहाँ कोई नही है,
जयचंद बैठा कुर्सी पर मुस्कराएगा।
क्या खबर थी ये........
आग लगा खुद ही लोगॊं से ये कहे-
देश पड़ोसी तुम्हारा घर जलाएगा।
क्या खबर थी ये........
फैला के आतंक खुद शोर करें ये,
खून की हर बूँद वतन पर लुटाएगा।
क्या खबर थी ये........
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हैं यहाँ,
वोट की खातिर ये इनको लड़ाएगा।
क्या खबर थी ये........
सत्ता संभाल बैठे हो जब दोषी यहाँ सारे,
कौन देशवासीयों को न्याय दिलाएगा।
क्या खबर थी ये........
भगत राजगुरु सुखदेव सोचते होगें-
अपनों की गुलामी से, कौन बचाएगा।
क्या खबर थी ये........
7 टिप्पणियाँ:
चिंता वाजिब है. उम्मीद करनी चाहिये कि सुबह ज़रूर होगी.
विचारणीय!
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
सादर
समीर लाल
बन्दी है आजादी अपनी, छल के कारागारों में।
मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।
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मेरी ओर से स्वतन्त्रता-दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
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वन्दे मातरम्!
विचारणीय प्रस्तुति!
राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।
अपनो की गुलामी ......... फ़िर कोई भगत सिंह ,आज़ाद ,राज्गुरु,सुखदेव का इन्तज़ार
apki kavita desh ki paristithi pe bilkul anurup hai...... bohot hi bhavnatmak hai.....
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