Saturday, June 26, 2010

एक भीगी - सी याद..- पिताजी की पुण्य तिथि पर...




नींद उड़ जाती है जब जिक्र तेरा होता है।
अकेला जब होता है  दिल, बहुत रोता है।

उदास रातों मे अक्सर नजर आता है तू,
ये हादसा क्यूँ बार बार, मेरे संग होता है।

कौन देगा जवाब अब ,मेरे सवालों का,
तू अब चैन से बहुत दूर कहीं सोता है।

मेरे हरिक दुख को सुख मे बदलने वाले,
इतना नाराज कोई, अपनो से  होता है।

या खुद आ या बुला मुझको पास अपने,
परमजीत से अब नही इन्तजार  होता है।

14 टिप्पणियाँ:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

आपके पिता जी को श्रद्धा सुमन अर्पित कर्ता हूं .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पिताश्री को नमन!

राज भाटिय़ा said...

वाहे गुरु उन्हे शांति परदान करे, हमारी तरफ़ से पित जी कॊ श्रांजलि

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

परमजीत सिंह बाली जी
नमस्कार !
एक भीगी सी याद … पिताजी की पुण्य तिथि पर
पढ़ कर आपकी भावनाओं को नमन करता हूं ।

मेरी ओर से भी श्रद्धा सुमन अर्पित हैं ।

ऐसे ही जज़्बातों को महसूस करने के लिए अभी विजिट करें मेरे ब्लॉग शस्वरं पर

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

Kunal Verma said...

आपके इस कविता को पढकर मेरी आँखे भर आईँ।

KULDEEP SINGH said...

nice i like it.

HBMedia said...

पिता जी को श्रद्धा सुमन अर्पित...

Several tips said...

This is a good blog.

https://kathaanatah.blogspot.com said...

नींद उड़ जाती है जब जिक्र तेरा होता है।
aur akele mayn mera dil bhi bahut rota hai

jab bhi hoti hai udasi to nazar आता है तू,
jane kyon aisa mere saath hua karta hai

ab mere paas savalon ke naheen guldaste,
तू javaabon ke gulistaan mayn kaheen सोता है।

jane kya baat thi tu rooth gaya hai mujhse,
kya koi apno se is tarah khafa hota hai.

abto jeene ki sakat bhi naheen baqi mujhmayn,
ai परमजीत bata gaib mayn kya hota hai.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

ओह! भाव विभोर श्रद्धांजली!
बाऊ जी,
आपका अगाध प्रेम स्पष्ट झलकता है! एक टीस, एक कमी को बखूबी उकेरा है आपने! लेकिन होई सोई जो राम रची राखा!
इश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे!
ज़ाहिर है के आप इससे वाकिफ होंगे, पर फ़िर भी.....
नैनं छिन्दन्ति शास्त्रानी, नैनं दहति पावक:
ना चैनं क्लेदयन्त्यापो, ना शोषयति मारुत:

शिक्षामित्र said...

धर्मग्रंथ कहते रहें कि मृत्यु भी एक नए जीवन में प्रवेश या देह का चोला बदलने जैसा मात्र है,मगर मनुष्य की संवेदनशीलता उसे खींचती ही है। यदि हम वर्तमान को उसकी सम्पूर्णता में जीने की यथासंभव कोशिश करें,तो विछोह को अधिक सहज रूप में ले पाना संभव होता है।

Pawan Kumar Sharma said...

nice

Daisy said...

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Daisy said...

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