Monday, October 6, 2008

रह जाता ब्रह्मचारी

मेरे घर हर दो चार दिन बाद
एक तूफान आता है।
लड़ती हैं महिलाएं
लेकिन नुकसान हर बार
मेरा कर जाता है।

मैनें देखा है अक्सर
बिना किसी कारण के भी
वह लड़्ने का कारण ढूँढ लेती हैं।
आज तक समझ ना सका
ऐसा खेल वे
कैसे खेल लेती हैं।

सब से अजीब बात तो
तब होती हैं।
जब वे लड़्ती तो हैं आपस में,
पर मेरे सामनें बैठकर रोती हैं
दो दिन बाद फिर
एक ही बिस्तर पर सोती हैं।

उन का ये बार-बार का
रोना-धोना देख कर
मेरी समझ गई मारी।
अब सोच रहा हूँ
शादि ना करता
रह जाता ब्रह्मचारी।

8 टिप्पणियाँ:

राज भाटिय़ा said...

इस का जबाब तो आप को चो या फ़िर नारी वालिया ही दे सकती है,
वेसे यह आप के घर की नही, भारत की नही पुरे विश्व की नारियो की है,चाहे अमेरिका हो या युरोप भाई इन्हे लडने दो नही तो यह हम से लडेगी :)
आप मस्त रहॊ एक की एक कान से सुनओ दुसरी की दुसरे कान से, फ़िर मस्ती से सो जाओ

दिलीप कवठेकर said...

आपका ये प्रॊब्लेम अंतर्राष्ट्रीय है.

इसका समाधान मिल जाये तो किताब लिख देना. हाथों हाथ बिक जायेगी!!

वर्ना...
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन,
उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा...

makrand said...

aap to bali ho
kahr bramchari
regards

makrand said...

aap to bali ho
kahr bramchari
regards

makrand said...

sorry read kahe bramchari

प्रदीप मानोरिया said...

शानदार रचना आपके आगमन के लिए धन्यबाद मेरी नई रचना शेयर बाज़ार पढने आप सादर आमंत्रित हैं
कृपया पधार कर आनंद उठाए जाते जाते अपनी प्रतिक्रया अवश्य छोड़ जाए

अभिषेक मिश्र said...

Raj ji ka sujhav hi sahi hai, Shubhkaamnayein.

Satish Saxena said...

वास्तव में इंटरनेशनल प्रॉब्लम !

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