आज सुबह नीदं देर से खुली
लेकिन उठते ही हम ने
पत्नी को दी-
"दशहरे की बधाई।"
यह सुन पत्नी चिल्लाई-
ओ कुम्भंकरण के भाई!
आज छुट्टी है तो
क्या पड़े-पड़े खाट तोड़ोगे।
उठकर काम मे हाथ बटाओं,
शाम होने से पहले ही तुम
दोस्तों संग दशहरा देखने दोड़ोगे।
हमने कहा-
हमें रावण का भाई मत कहो,
हम तो रामजी के पद चिन्हों पर चलते हैं।
पत्नी बोली-
रहने दो।
आज सभी पुरूष
राम के नाम पर
हम अबलाओं को छलते हैं।
हमने पूछा-
हमने कब छला जरा बतला दो।
वह बोली -
सदियों से हमे अर्धागनी कहते हो,
अब बराबरी का हक भी दिलवा दो।
हमने तेश मे आकर कहा-
जाओ !आज से हमने तुम्हें ,
बराबरी का हक दिया।
अब क्या कहती हो बता दो।
वह बोली-
ठीक है,
अब जरा चुन्नु-मुन्नु को नहला दो।
अब अपनी बात पर कैसे टिके रहे?
भाईयों जरा बता दो।
हमारी इस अधुरी कविता को
कोई पूरा करवा दो।
5 टिप्पणियाँ:
दशहरे के पावन पर्व, नये ब्लाग के सृजन और सुंदर व्यंग्य कविता पर मेरी तरफ से बधाई स्वीकार करें।
दीपक भारतदीप
आपको दशहरे की बधाई
अरे भाई हम खुद नही नहाते ओर आप चुन्नु मुन्नु को भी नहलाने के लिये कह रही है, राम राम , बेसे नहाने से क्या लाभ गंदे फ़िर से हो जायेगे, चलो फ़िर से सोये......
आप सभी को दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं
aapki adhuri chodi ko
poora karne ki jurrat hum kare
fir chaay se aur aapse kaam le lene wali bhabhiji ko bhi kho de
na baba na
आपको दशहरे की बहुत बहुत बधाई
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