Sunday, October 19, 2008

लिव इन


आज कल हमारी पत्नी
हर बात में दखल देने लगी है।
लगता है नारी मुक्ति की
अभिलाषा उस में भी जगी है।

हमारा
लिव इन का समर्थन
उसे नही भा रहा है।
कहती है
आदमी बहुत चालाक है,
सारी मलाई
वह खुद ही खा रहा है।

माना लिव इन से
दूसरी औरत को
हक मिल जाएगा।
गुलछरें तो आदमी ही उड़ाएगा।

लिव इन का मजा तो तब है
जब औरत को
दो-दो पति रखने का हक हो।
अपने हिस्से मे भी यह गुड लक हो।

घर वाले और बाहर वाले से,
अपनी फरमाईशें पूरी करवाएं।
एक से घर का काम ले,
दूसरे के संग पिच्चर जाएं।

ये भी क्या !!
लिव इन के जरिए
तुम्हें दो-दो रखने का
अधिकार मिल जाएगा।
एक घर तो
तुम्हारी कमाई से चलता नही
दूसरा क्या खाक चल पाएगा!

3 टिप्पणियाँ:

राज भाटिय़ा said...

भाई अब क्या कहे???
आप की कविता बहुत ही सुन्दर लगी
धन्यवाद

Unknown said...

भाई आपकी कविता बहुत अच्छी लगी..
धन्यवाद ...

Unknown said...

very nice,keep the spirit alive

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