Monday, February 14, 2011

एक बीमार की गजल


बहुत दर्द है कमर में ना नींद आती है।
रात भर खाँसी हमको बहुत सताती है।

कोई दवा ना दुआ का असर हो रहा है आज
जब किस्मत फूटती है ऐसी हो जाती है।

मगर लिखने का है जो रोग कुलबुलाता है
बीमारी भी गजल बन के हमको सताती है।

शायद गजल पढ़ किसी की दुआ लग जाये
इसी उम्मीद में बैठें हैं किस्मत क्या दिखाती है।





15 टिप्पणियाँ:

रूप said...

बहुत बढ़िया . बधाई .

राज भाटिय़ा said...

यह लो जी टिपण्णी, इसे चार बराबर हिस्सो मे बांट कर सुबह भुखे पेट एक गिलास पानी के संग गटक ले, दुसरी खुराक १० बजे चाय के संग, तीसरी खुराक दोपहर २ बजे लस्सी के संग गटक ले, ओर चोथी खुराक शाम को ६ बजे गिलासी के संग गटक जाये फ़िर देखे केसे बिमारी नही भागती,

खबरों की दुनियाँ said...

शीघ्र स्वस्थ हों , भाटिया जी सलाह पर कड़ाई से अमल करें , ठीक हो जायेंगे । शुभ कामनाएं ।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

वाह वाह

महेन्‍द्र वर्मा said...

ग़ज़लें लिखने की बीमारी तो अच्छी बात है। यह बीमारी तो किसी पुण्यात्मा को ही होती है।

Smart Indian said...

सुबहान अल्लाह!

Kunwar Kusumesh said...

संक्षिप्त मगर सुन्दर अभिव्यक्ति.

Anupama Tripathi said...

बढ़िया बात लिखी है -
बधाई

Sanjay Grover said...

दिलचस्प प्रयोग।

निर्मला कपिला said...

मगर लिखने का है जो रोग कुलबुलाता है
बीमारी भी गजल बन के हमको सताती है।
वाह वाह बाली जी अगर लिखने की बिमारी है तो कहूँगी कि लगी ही रहे। बाकी सब के लिये शुभकामनायें।

वीना श्रीवास्तव said...

मगर लिखने का है जो रोग कुलबुलाता है
बीमारी भी गजल बन के हमको सताती है।
वाह भाई वाह... क्या बात है
बीमारी भी हमको गज़ल बनके सताती है...
बहुत खूब
फालो भी कर रही हूं...
आप भी जरूर आएं...

Emily Katie said...

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Daisy said...

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Daisy said...

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PurpleMirchi said...

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